ग्वालियर। भ्रष्टाचार के खिलाफ ट्रायल को रोकने का अधिकार किसी को नहीं है। हाईकोर्ट को भी नहीं। ऐसे मामलों पर स्टे नहीं दिया जा सकता। ना केबीनेट इसे रोक सकती है और ना ही न्यायालय। यह व्यवस्था ग्वालियर हाईकोर्ट में एक बार फिर दोहराई गई।
मामला मुरैना नगर पालिका के लेखाधिकारी शिवचरण दंडौतिया के खिलाफ चालान पेश को लेकर था जिसे हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने स्टे कर दिया था।
लेखाधिकारी शिवचरण दंडौतिया 30 जुलाई 2013 को 7 हजार रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगेहाथ पकड़े गए थे। लोकायुक्त ने जब उनके खिलाफ नगर पालिका से अभियोजन की स्वीकृति मांगी तो नपा ने एक प्रस्ताव पारित कर अभियोजन की स्वीकृति को रोक दिया। इसके बाद लोकायुक्त ने कलेक्टर के यहां अभियोजन की स्वीकृति के लिए आवेदन किया।
कलेक्टर ने शिवचरण दंडौतिया के खिलाफ लोकायुक्त को अभियोजन की स्वीकृति दे दी। कलेक्टर के इस आदेश को दंडौतिया ने हाईकोर्ट की एकल पीठ में चुनौती दी थी, जिस पर एकल पीठ ने सुनवाई करते हुए कलेक्टर के आदेश को स्टे कर दिया था। बुधवार को युगल पीठ में दंडौतिया के केस की सुनवाई की गई। शासकीय अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि सत्यनारायण वर्सेस राजस्थान केस में सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार के केसों में स्थिति स्पष्ट की थी।
इसमें साफ लिखा है कि किसी भी व्यक्ति के खिलाफ भ्रष्टाचार का केस दर्ज है तो उसकी ट्रायल को रोका नहीं जा सकता है। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद स्थगन आदेश को निरस्त कर दिया। लोकायुक्त अभियोजन की कार्रवाई आगे बढ़ा सकता है।