सरकार की कुछ नीतियाँ समझ से परे ही बनती है। उन्ही मै से एक है प्रतिस्पर्धा परीक्षा मैं अन्य राज्यों के आवेदकों का चयन किया जाना। जो राज्य के शिक्षित बेरोजगारों के हित मै उचित प्रतीत नही होता।
सालों से न्यूनतम वेतन पर उत्कृष्ट कार्य करने वाले अतिथि शिक्षकों से सरकार अपना काम निकलवाने के बाद भी ना तो इन्हें अतिरिक्त अंक प्रदान किये है और ना ही प्राथमिकता। ऊपर से इनके जले पर नमक छिड़कने के लिए अन्य राज्यों से लोगों को बुला कर बैठा दिया है।
इसका ताजा उदाहरण है सत्र 2013 मै देवास जिले मै वर्ग 2 मै 300 संस्कृत संविदा शिक्षकों के पद खाली दर्शाये गये। जिसमै से लगभग 60% से ज्यादा पदों पर अन्य राज्यों के संस्कृत ज्ञानियों की पदस्थापना की गई। यहाँ एक सीधा प्रश्न मष्तिष्क मै उपजता है कि ये इतने ही ज्ञानी थे तो स्वयं के ही राज्य मै ही चयनीत क्यूँ नही हुये। ऐसे ज्ञानियों की हमारे राज्य मै भी कमी नही थी। आखिर अन्य राज्यों मै चयन से वंचित रहे आवेदकों का मध्यप्रदेश मै चयन करके सरकार क्या साबित करना चाहती है। यह पूर्णतः अनुचित है।
क्या मध्यप्रदेश मै कोई भी शिक्षित बेरोजगार नही है ?
या फिर कोई भी शिक्षित संविदा शिक्षक बनने की योग्यता नही रखता है?
मध्यप्रदेश के नागरिकों ने सरकार को उनकी समस्याओं को हल करने के लिए चुन के भेजा है या अन्य राज्यों के लोगों को रोजगार मुहैया करवाने ? अन्य राज्यों के आवेदकों को अवसर देने से पहले सरकार को व्यापमं पास अप्रशिक्षित अतिथि शिक्षकों को अवसर देना चाहिए। प्रशिक्षण तो बाद मै भी दिया जा सकता था। सर्वप्रथम अपने राज्य के नागरिकों के समुचित रोजगार की व्यवस्था करना सरकार का कर्तव्य है। आखिर सरकार को बनाया भी तो इन्होंने ही है।
कृष्णा राठौर
जिला देवास
मो, 7869783241