कृष्णा राठौर। इस वर्ष को सरकार गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा वर्ष के रूप मै मना रही है। इस हेतु शीर्ष से लेकर जनशिक्षक तक सभी को विद्यालय के निरिक्षण के आदेश दिए गये है। क्या अंतर पडता है ऐसे निरिक्षण से जब सब अपने साथियों को ऐसे निरिक्षण की पूर्व सूचना दो दिन पहले ही दे देते है।
अष्टम कक्षा तक सभी पास करने के अपने पूर्व निर्णय पर भी सरकार पुनर्विचार कर रही है। वास्तव मै देखा जाये तो गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के लक्ष्य को लेकर सरकार कुछ भ्रमित लगती है। मुफ्त मध्यान्ह भोजन, साइकिल, गणवेश, किताबें, विभिन्न छात्रवृति सब मिलकर भी गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा नही दे पा रहे है।
पुराने समय मे इन सभी सुविधाओं के आभाव मै भी गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा दी जाती थी। फिर समस्या कहा है ? समाधान क्या है ?
मूल समस्या की और बिल्कुल ध्यान नही दिया जा रहा है। प्राथमिक स्तर से माध्यमिक मे आने वाले छात्र/छात्राओ को अंक गणित, हिंदी लेखन/वाचन, अल्फाबेट का ज्ञान भी नही होता है। सरकार यदि यथार्थ रूप गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के लक्ष्य को हासिल करना चाहती है, तो सर्वप्रथम प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों की समस्या हल कर उन्हें गैरशैक्षणिक कार्यो से पृथक कर शिक्षण कार्य मै लगाना चाहिए। गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा देने के लिए सरकार को दिखावा नही सार्थक प्रयास करने चाहिए।
कृष्णा राठौर
सतवास जिला देवास
मध्य प्रदेश