भोपाल। मप्र की सरकारी रगों में रिश्वतखोरी किस कदर बस गई है, यह इसका सबसे उपयुक्त उदाहरण है। गुना के आरोन में 29 बीघा जमीन के नामांतरण के लिए प्रदीप जाट से पटवारी अमर सिंह ने 13 हजार की रिश्वत मांगी। प्रदीप ने पटवारी को दस हजार स्र् दे दिए। जब पटवारी ने शेष रकम की मांग की तो परेशान प्रदीप ने मार्च 2014 में लोकायुक्त पुलिस सेे उसे पकड़वा दिया। अमरसिंह की जगह महेंद्रसिंह रघुवंशी को नए पटवारी के रूप में भेजा गया। जब प्रदीप ने महेंद्र सिंह ने नामांतरण के लिए कहा तो उसने तीस हजार स्र्पए की मांग कर दी। जब प्रदीप रिश्वत की मांग पूरी नहीं कर पाए, तो उन्होंने अपने मन से नामांतरण कराने का विचार ही निकाल दिया।
लोकायुक्त पुलिस भी अधूरा काम करती है। शिकायत पुख्ता हो जाने के बाद रिश्वतखोर अधिकारी कर्मचारी को तो पकड़ लेती है लेकिन पीड़ित को न्याय नहीं दिलाती। जिस काम के लिए उसे परेशान किया गया, वो लोकायुक्त छापे के बाद भी लटका ही रह जाता है।