डेंगू का डंक: स्टॉक में मच्छर मारने की दवा ही नहीं

ग्वालियर। मप्र में डेंगू के नाम पर दहशत का धंधा शुरू हो गया है। वही पुरानी परंपरा एक बार फिर दोहराई जा रही है। एक तरफ जनता में डेंगू की दहशत और दूसरी तरफ सरकारी महकमों में इंतजाम नहीं। मलेरिया विभाग के पास डेंगू के मच्छर को मारने वाली दवा ही नहीं है। 2 लीटर का एक डिब्बा है वो भी एक्सपायर हो गया।

घोसीपुरा क्षेत्र में डेंगू का पहला मरीज मिलने के बाद स्वास्थ्य विभाग डेंगू-मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों को मारने के लिए एक्शन प्लान चलाने का दावा कर रहा है, लेकिन दावा झूठा है। खाली तमाशा किया गया है। मच्छरों को मारने के लिए पायरेथ्रम का छिड़काव किया जाता है। साथ ही फॉगिंग करने के लिए भी पायरेथ्रम को डीजल के साथ जलाया जाता है। मलेरिया विभाग के पास यह दवा केवल दो लीटर ही बची है। यह दवा भी जून में ही एक्सपायर हो चुकी है। यह केवल ग्वालियर ही नहीं पूरे प्रदेश में एक्सपायर हो चुकी है।

फैक्ट फाइलः
स्वास्थ्य संचालनालय ने जुलाई 2013 में पायरेथ्रम खरीदी थी, जिसकी एक्सपायरी डेट जून 2015 थी
ग्वालियर मलेरिया विभाग के स्टॉक रूम में जो पायरेथ्रम रखी हुई है, उसके ड्रम पर एक्सपायरी डेट जून 2015 ही लिखी हुई है
पायरेथ्रम कैरोसिन के साथ मिलाकर प्रयोग में लाई जाती है। 19 लीटर कैरोसिन में 1 लीटर पायरेथ्रम मिलाई जाती है
अगर मलेरिया का एक मरीज मिलता है तो आसपास के 50 घरों में छिड़काव किया जाता है। इसमें 1 लीटर पायरेथ्रम खर्च होती है
डेंगू का एक मरीज मिलता है तो मरीज के घर के आसपास 400 मीटर के दायरे में आने वाले क्षेत्र में छिड़काव किया जाता है। इसमें 2 से 5 लीटर तक पायरेथ्रम खर्च होती है
ग्वालियर में टेमोफॉस उपलब्ध है, लेकिन यह भी लगभग 25 लीटर है।

बच्चों के लिए एसीटी भी नहीं:
मलेरिया विभाग के पास मलेरिया से ग्रसित 5 से 9 साल तक के बच्चों को दी जाने वाली एसीटी (आर्टिमिसिनिन बेस्ड कॉम्बीनेशन थेरेपी) टेबलेट भी नहीं है। इसके लिए डिमांड की गई है, लेकिन अभी तक यह उपलब्ध नहीं है। सूत्रों का कहना है कि वयस्कों को दी जाने वाली भी एसीटी का स्टॉक कम है।

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