भोपाल। इन दिनों चल रही वन रक्षकों की भर्ती प्रक्रिया पर सवाल उठाया गया है। वनविभाग में चल रहे झोलझाल से वाकिफ एक समाचार सूत्र ने नाम ना छापने की शर्त पर दावा किया है कि जंगलों को जितने वनरक्षकों की जरूरत है, उससे ज्यादा फिलहाल नौकरी में मौजूद हैं, फिर भी भर्तियां निकालीं गईं हैं। सूत्र का दावा है कि ये भर्तियां केवल रिश्वतखोरी के लिए की गईं हैं।
सूत्र का दावा है कि बीट सुरक्षा में कर्मी केवल दस्तावेजों में दर्शाई गई है, हकीकत में कोई कमी नहीं है, यह बात अलग है कि वनरक्षकों की ड्यूटी अब जंगलों के बजाए अफसरों की बेगारी में ज्यादा लग गई है। कुछ शातिर किस्म के वनरक्षकों ने फील्ड के बजाए आफिस में अटैचमेंट करवा लिया है, यही कारण है कि जंगल की सर्चिंग के लिए वनरक्षक कम पड़ रहे हैं।
सूत्र का दावा है कि वनविभाग में 30 प्रतिशत फिल्ड का अमला आफिस में अटेच है या फिर अधिकारी अपने काम के लिऐ रखे है। ये लोग अपना काम नहीं कर रहे, फिर भी इन्हे वेतन मिल रहा है। चाहे तो किसी थर्डपार्टी से आडिट करा लें।
वनविभाग में बाबूराज
वनविभाग में अफसरों की नजर केवल काली कमाई पर है जबकि आफिसों में बाबूराज कायम हो गया है। वन विभाग में 05 से 15 वर्षा तक लगतार एक ही बाबू एक ही कार्यालय में कार्यरत रहकर एक तरफा राज चलाया जा रहा है। कभी कुछ ज्यादा होता भी है तो बाबू को एक शाखा से दूसरी शाखा में भेज दिया जाता है, फिर कुछ समय बाद उसे वापस बुला लिया जाता है।