भोपाल। भले ही पूरे प्रदेश में रुक रुक कर सरकारी स्कूलों के खिलाफ प्रदर्शन चल रहे हों और किसी एक प्रदर्शन के दौरान सीएम शिवराज सिंह ने सरकारी स्कूलों के निजीकरण से इंकार भी कर दिया हो परंतु हकीकत यह है कि अफसरों ने सरकारी स्कूलों के निजीकरण का मसौदा तैयार कर लिया है। शीघ्र ही आदिम जाति कल्याण विभाग एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट (ईओआई) जारी कर देगा। शुरूआत 20 स्कूलों से की जा रही है। प्रयोग सफल रहा तो पूरे प्रदेश में लागू कर दिया जाएगा।
इसके मुताबिक संस्था न केवल स्कूल का संचालन करेगी बल्कि मौजूदा स्टाफ को रखना है या नहीं, यह भी वही तय करेगी। इसके अलावा आदिवासी इलाकों में पीपीपी (पब्लिक- प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल के तहत शुरुआत में 22 स्कूल खोलने की योजना है।
सरकार के इस फैसले से लग रहा है कि वह निजी हाथों में खेल रही है। इससे पहले हाल ही में सरकार ने गाइडलाइन जारी कर निजी स्कूलों को मनचाही फीस वसूलने की छूट दे दी है। सीबीएसई पैटर्न के एकलव्य स्कूलों को चलाने का जिम्मा जिस संस्था को मिलेगा उसे सरकार प्रति छात्र सालाना 42 हजार रुपए भी देगी। यह राशि केंद्र सरकार देती है। इसके अलावा यदि कोई खर्च होगा तो संस्था उठाएगी।
पीपीपी मॉडल के तहत 22 स्कूल चलाने का प्रस्ताव आदिम जाति कल्याण विभाग को भेजा जा चुका है, जिसे मंजूरी के लिए कैबिनेट की बैठक में भेजने की तैयारी हो रही है। प्रस्ताव के मुताबिक स्कूल का संचालन पूरी तरह से निजी निवेशक के हाथ में रहेगा, जो प्रोजेक्ट में 60 प्रतिशत राशि लगाएगा।
संस्था को स्कूल बनाने के लिए सरकार जमीन 30 साल की सशर्त लीज पर देगी। जिसकी मुख्य शर्त स्कूल के परिणामों पर निर्भर होगी। रिजल्ट बेहतर होगा तो अनुबंध जारी रहेगा वरना अनुबंध स्वत: खत्म हो जाएगा। अफसरों के मुताबिक पीपीपी मॉडल में स्कूल खोलने की मुख्य वजह आदिम जाति कल्याण विभाग के तहत 89 आदिवासी ब्लॉक में संचालित 1700 हाइस्कूल और हायर सेकेण्डरी स्कूलों में शिक्षकों की कमी होना है। मौजूदा स्थिति में स्कूलों में करीब 12 हजार पद खाली पड़े हैं।
PPP मॉडल में 35 करोड़ का एक स्कूल
प्रोजेक्ट के मुताबिक एक स्कूल करीब 35 करोड़ रुपए का पड़ेगा। इसमें छात्रों को हर वो सुविधा मिलेगी जो बड़े सीबीएसई स्कूलों में मिलती है। स्कूलों में नियमित पढ़ाई के साथ अलग-अलग विधाएं भी सिखाई जाएंगी ताकि छात्र जब स्कूल से बाहर निकले तो बाकी छात्रों से किसी तरह पीछे न रहे।
350 छात्रों की फीस भरेगी सरकार
एक स्कूल में लगभग सात सौ छात्रों को पढ़ाने का इंतजाम होगा। इसमें आधे यानी 350 छात्र आदिम जाति कल्याण विभाग संस्था को चयन करके देगा। इन छात्रों की फीस भी विभाग की ओर से संस्था को मुहैया कराई जाएगी। बाकी छात्रों को संस्था अपने स्तर पर भर्ती करेगी। इन छात्रों के लिए फीस का मॉडल संस्था तय करेगी।
क्यो उठाया कदम
एकलव्य स्कूलों के मामले में गुजरात में इस तरह का प्रयोग सफल हो चुका है। तीन साल के लिए स्कूल निजी क्षेत्र को सौंपे गए थे। इस कदम से संस्थाओं में व्यवसायिक सोच आ जाएगी। अभी स्कूलों को कलेक्टर की अध्यक्षता में गठित स्थानीय समितियां चलाती हैं।
उमाकांत उमराव, कमिश्नर आदिम जाति कल्याण विभाग