भोपाल। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भले ही एक कार्यक्रम में सरपंच पति की चल रही संस्कृति रोकने की बात चुटकी लेते हुए कही हो लेकिन यह सच्चाई है। मप्र राज्य की चालीस फीसदी पंचायतें सरपंच पति ही चलाते हैं। इतना ही नहीं सरकारी अफसर भी इन्हे विशेष सम्मान देते हैं। एक पंचायत में तो पतिदेव ने ही शपथ ग्रहण भी कर ली थी। यहां सिर्फ ग्राम पंचायतों में नहीं बल्कि नगरपालिकाओं की हालत भी ऐसी ही है। शिवपुरी नगरपालिका की एक महिला अध्यक्ष से उसके पति ने मोबाइल फोन तक छीन लिया था। सारे काम अध्यक्ष पति ही करते थे। श्रीमतीजी तो बस हस्ताक्षर करतीं थीं।
सरपंच पतियों की पंचायत के कार्यो में दखल अंदाजी इतनी हावी हो गई है कि गांवों की पंचायतों से लेकर जनपद पंचायत कार्यालय तक उनके पति ही काम को अंजाम देते हैं। आलम तो यह है कि ग्रामीण तो दूर की बात अधिकारी भी पतियों को सरपंच साहब के नाम से संबोधित करते हैं।
गांवों में कहने को तो सरपंच महिलाएं हैं लेकिन उनको अपने ही कार्य और अधिकार क्षेत्र की जानकारी नहीं है। कुछ महिला सरपंच तो ऐसी भी हैं जो दरवाजे की चौखट के बाहर अब तक नहीं आ सकी हैं। चुनाव प्रचार के लिए भी वो बाहर नहीं निकलीं। गांवों में पंचायत के विकास की बात हो या फिर आपसी झगड़े का समझौता सब सरपंच पति बाहर बैठकर निस्तारण कर देते हैं। सरकार से अधिकार मिलने के बाद भी पतियों द्वारा उनके अधिकारों का हनन ऐसा किया जाता है। गांव से सरकारी दफ्तरों तक सरपंच के नाम से उनके पति ही जाने जाते हैं। अब प्रधानमंत्री द्वारा सरपंच पति संस्कृति की समाप्ति को लेकर जो कहा गया है इससे आस जागी है कि महिलाओं को भी अपने अधिकारों का प्रयोग करने का मौका मिल जाएगा।