CG में 30% शिक्षाकर्मी जालसाज: MP Board की फर्जी मार्कशीट लगाई

भोपाल। एक जांच के दौरान पाया गया है कि छग में करीब 30 प्रतिशत शिक्षाकर्मी जालसाज हैं और जाली दस्तावेजों के आधार पर नौकरियां प्राप्त कर चुके हैं। उन्होंने पं.रविशंकर शुक्ल विवि और माध्यमिक शिक्षा मंडल माशिमं की फर्जी मार्कशीट लगाईं हैं। सवाल यह है कि ये जाली मार्कशीट उन्होंने खुद प्रिंट की हैं या इन संस्थानों में कोई है जो यह काला कारोबार कर रहा है।

533 शिक्षाकर्मियों की मार्कशीट की जांच में 165 जालसाजों का भांडा फूटा। उनकी मार्कशीट फर्जी निकल गई। इतनी बड़ी संख्या में फर्जी मार्कशीट मिलने से प्रशासनिक अधिकारी हैरान हैं। आशंका है कि शिक्षाकर्मी बनने की लालच में सैकड़ों ने जाली मार्कशीट बनवाई है। इसके लिए राज्य में बड़ा रैकेट काम कर रहा है। रविवि और माशिमं ने लोगों की शिकायतों के बाद अलग-अलग समय में जांच की। रविवि की जांच में 125 मार्कशीट और माशिमं के रिकार्ड से 40 अंकसूचियां फर्जी होने की पुष्टि हुई। सबसे ज्यादा मामले दुर्ग, बेमेतरा, कवर्धा जिले में शिक्षाकर्मी बनने में फर्जीवाड़ा सामने आया है। इन जिलों में उन छात्रों ने यह खुलासा किया, जिनका सलेक्शन नहीं हो सका।

उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत उन शिक्षाकर्मियों की डिटेल निकलवाई जिनके बारे में उन्हें शक था। रिपोर्ट आने के बाद उनका शक सही साबित हुआ। फिलहाल दुर्ग, राजनांदगांव, कवर्धा और बेमेतरा जिले में 70 से अधिक शिक्षाकर्मियों को बर्खास्त कर दिया गया है। कुछ ने डर में नौकरी छोड़ दी तो कुछ को गिरफ्तार कर लिया गया है।

रविवि के अधिकारियों का कहना है कि विवि में रोजाना 20-25 अंकसूची वेरिफिकेशन के लिए आते हैं, लेकिन ज्यादातर वेरिफिकेशन दूसरे राज्यों से आते हैं। यहां के जो छात्र दूसरे प्रदेशों में जाकर नौकरी कर रहे हैं, उनकी अंकसूची में गड़बड़ी बहुत कम मिलती है। लेकिन सबसे ज्यादा फर्जी अंकसूची के प्रकरण शिक्षाकर्मियों के मामले में मिल रही है।

ऐसे होता है वेरीफिकेशन
संबंधित अंकसूची को विवि भेजा जाता है, उसके साथ वेरिफिकेशन शुल्क भी लिया जाता है। विवि 15 दिन के भीतर वेरिफिकेशन करने के बाद रिपोर्ट नियोक्ता को भेज देती है। बेमेतरा जिले के साजा नगर पंचायत में दो दर्जन लोगों की अंकसूची वेरिफिकेशन के लिए भेजी गई, लेकिन संस्था ने उनकी फीस ही नहीं भेजी। इस वजह से उनका वेरिफिकेशन भी नहीं किया गया।

वेरिफिकेशन ही नहीं किया
सरकारी नौकरी लगती है तो सबसे पहले उस व्यक्ति की डिग्री का वेरिफिकेशन कराना होता है, लेकिन प्रदेश में डेढ़ लाख से अधिक शिक्षाकर्मियों की भर्ती की गई, किसी की अंकसूची वेरिफिकेशन के लिए नहीं भेजी गई। केवल शिकायतों वाले प्रकरणों की जांच में फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है। इसका अर्थ यह है कि इस घोटाले में शिक्षा विभाग के अधिकारी भी शामिल हैं।

5 साल में ज्यादा भर्ती
राज्य सरकार ने पिछले पांच सालों में 80 हजार से ज्यादा शिक्षाकर्मियों की भर्ती की है। पहले शिक्षाकर्मी की भर्ती व्यावसायिक परीक्षा मंडल की परीक्षा की मेरिट लिस्ट के आधार पर की गई लेकिन बाद में जिला पंचायत, जनपद पंचायत और ग्राम पंचायतों को बीएड-डीएड, टीईटी के साथ 12वीं के साथ स्नातक और स्नातकोत्तर की अंकों के आधार पर की गई। इसी में सबसे ज्यादा फर्जीवाड़ा सामने आया है। इसमें बीए, एमए, बीकाम, एमकाम, बीएससी, एमएससी, बीएड, एमएड के मार्कशीट फर्जी मिले हैं।

जिम्मेदार कौन
नियुक्ति के समय जांचकर्ता को अंकसूची के फर्जी होने पर शंका हो या फिर कोई शिकायत करे, तभी अंकसूची को जांच के लिए विश्वविद्यालय भेजा जाता है। जहां-जहां फर्जी अंकसूची की शिकायत मिली, वहां जांच कराकर बर्खास्तगी की कार्रवाई की जा रही है।
एमके राउत, एसीएस पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग

विवि और शिक्षा मंडल
फर्जी अंकसूची मिलने के बाद भी विश्वविद्यालय और माध्यमिक शिक्षा मंडल अपनी ओर से कोई कार्रवाई नहीं करते। जबकि उनके संस्था की फर्जी डिग्री मिलने पर उन्हें संज्ञान लेना चाहिए। सवाल यह है कि वो चुप क्यों है। क्यों मंडल उस आदमी के खिलाफ एफआईआर नहीं कराता जिसने उसके जाली दस्तावेज तैयार किए। संदेह पुख्ता होता है कि माशिमं इसमें शामिल है।

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