पढ़िए मप्र में हुईं हाईप्रोफाइल फर्जी नियुक्तियों की लिस्ट

भोपाल। व्यापमं महाघोटाले को लेकर संघर्षरत कांग्रेस पार्टी और उसके वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ दबाव बनाने एवं राजनैतिक पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर राज्य सरकार और उसके इशारे पर विधान सभा सचिवालय द्वारा बदले की भावना से की जा रही कार्यवाही को लेकर कांग्रेस ने आज सरकार पर दूसरा बड़ा हमला बोला है।

कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता के.के.मिश्रा ने एक बार पुनः कांग्रेस महासचिव श्री दिग्विजय सिंह और विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी के विरूद्ध 12 वर्ष पुराने मामले में सरकार के इशारे पर विधानसभा सचिवालय द्वारा कराई गई एफ.आई.आर. के बाद विधानसभा के प्रमुख सचिव श्री भगवानदेव इसरानी सहित वर्ष 2004 से आज दिनांक तक की गई फर्जी /अयोग्य व्यक्तियों की नियुक्तियों पर निशाना साधते हुए इसके दोषियों पर भी एफ.आई.आर. दर्ज किये जाने की मांग की है। उन्होंने इन अवैध नियुक्तियों में प्रदेश मंत्रीमंडल से जुड़े कई मंत्रियों और भाजपा नेताओं पर सीधा और प्रामाणिक आरोप लगाया है।

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विधानसभा के प्रमुख सचिव भगवानदेव इसरानी पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि उनकी नियुक्ति हमेशा से ही विवादों में रही है। अपने आरोप को प्रामाणित करते हुए उन्होंने कहा कि इनका प्रथम नियुक्ति आदेश कृषि विभाग द्वारा 23.5.1974 को एक बाबू के पद पर जारी किया गया था, जबकि इनकी जन्म दिनांक 24.6.1956 है यानि तब इनकी उम्र मात्र 17 वर्ष 11 माह थी और वे अवयस्क थे। एक अवयस्क होने के बावजूद उनकी नियुक्ति कैसे हो गई ?

इसके पश्चात दिनांक 25.5.1974 को इनकी पदस्थापना ”पौध संरक्षण“ हेतु की गई। जबकि इनकी शैक्षणिक योग्यता भी स्तरीय नहीं थी। बी.काम, तृतीय वर्ष की परीक्षा इन्होंने ग्रेस मार्कस से पास की, एल.एल.बी. के त्रिवर्षीय पाठ्यक्रम को उन्होंने निर्धारित अवधि से अधिक समय 6- 7 वर्षों में उत्तीर्ण किया, एल.एल.बी. 2 एवं फायनल परीक्षा में इसरानी 1987 और 1989 में फेल हुए। पात्रता न होने के कारण अवर सचिव से उप सचिव के पद पर छ‘ माह के ट्रायल बेसिस पर इन्हें सशर्त पदोन्नति 18 मई, 1992 को दी गई, चार माह भी पूर्ण नहीं हो पाएं और 8 सितम्बर 1992 को कार्यनिष्पादन अपेक्षित स्तर का नहीं रहने के कारण इनकी पदोन्नति निरस्त करते हुए अवर सचिव पद पर फिर पदावनत कर दिया गया।

मध्यप्रदेश के विभाजन के बाद इन्हें छत्तीसगढ़ भेज दिया गया, वहां भी इनका कार्यकाल विवादास्पद रहा। ऐन.केन-प्रकारेण ये पुनः मध्यप्रदेश आ गये।
श्री इसरानी के खिलाफ विधान सभा में निर्माण कार्य से संबंधित हुए 6 करोड़ रूपये के घोटाले को लेकर 6.10.2007 को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 13 (डी), 13 (2) और 120बी के तहत पिछले सात वर्षों पहले विशेष पुलिस स्थापना लोकायुक्त, भोपाल में   एफ.आई.आर. दर्ज हुई है, किन्तु 7 वर्षों से यह प्रकरण लंबित हैं, इन्हें बचाने के लिए विधान सभा सचिवालय ने तत्कालीन लोकायुक्त रिपुसूदन दयाल के खिलाफ विशेषाधिकार का मामला तक दर्ज करा दिया जिसे लेकर उन्हें सर्वोच्च न्यायालय तक जाना पड़ा था, जहां सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश पारित किया कि भ्रष्टाचार के मामले में किसी को भी विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है, इस प्रक्रिया में दोनों ही पक्षों को सरकारी खजाने से मंहगे वकीलों को लाखों रूपयों का भुगतान तक करना पड़ा। भ्रष्टाचार को लेकर विधान सभा सचिवालय का दोहरा रूख क्यों? इसके बावजूद भी विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष द्वारा योग्य व्यक्तियों को दरकिनार कर एक अयोग्य और अक्षम व्यक्ति को प्रमुख सचिव कैसे बना दिया गया ?

इसी तरह मध्यप्रदेश विधानसभा सचिवालय ने वर्ष 2003 से वर्ष 2014 तक की गई अवैध नियुक्तियों, पदौन्नतियों और भ्रष्टाचार के उदाहरण देते हुए मिश्रा ने बताया कि-    

1. के.एल. दलवानी, जो को-आप,ऐक्ट के तहत गठित सोसाईटी के कर्मचारी थे, को तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष स्व. ईश्वरदास रोहाणी ने अपने निजी स्टाफ में निज सहायक के पद पर लेकर प्रमोशन देते हुए विधानसभा में सत्कार अधिकारी बनाया फिर माननीय विधानसभा अध्यक्ष के डिप्टी सेकेट्ररी और आखिर में विधानसभा स्थापना में अवर सचिव विधान सभा के पद पर संविलियन कर पदस्थ कर दिया गया, जो आज भी कार्यरत हैं ।

2. नरेन्द्र कुमार मिश्रा जो विधान सभा की समितियों में दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी की हैसियत से कार्य करते थे, को तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी द्वारा निजी अमले में सहायक ग्रेड- 1 के पद पर नोटशीट लिखी जाती है और उसी दिनांक में नियुक्ति आदेश जारी किया जाता है तथा उसी दिन नरेन्द्र मिश्रा द्वारा विधानसभा में ज्वाईनिंग भी दे दी जाती है।

इसके बाद 17 मई, 2004 को विकास आयुक्त कार्यालय भोपाल में सहायक सांख्यिकीय अधिकारी के पद पर प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ किये गये जब इन्होंने 17 मई 2004 के आदेश से 18 मई 2004 को पूर्वान्ह कार्य से मुक्त किये गये फिर भी विकास आयुक्त कार्यालय भोपाल द्वारा 17 मई 2004 को ही आदेश जारी कर दिया गया था एवं 18 मई 2004 को श्री नरेन्द्र मिश्रा द्वारा ज्वाईनिंग दी गई। विकास आयुक्त कार्यालय से इनकी सेवाएं माननीय अध्यक्ष के निजी अमले में वापस लेकर इनकी नियुक्ति अध्यक्ष के निजी अमले में वापस लेकर इनकी नियुक्ति पूर्व नियुक्ति का आधार लेकर सीधे विधानसभा सचिवालय स्थापना में सहायक ग्रेड- 1 के पद पर नियुक्त कर दिया गया है। मिश्रा नियुक्ति के दिनांक से ही केन्द्रीय मंत्री श्री नरेन्द्रसिंह तोमर के निजी सचिव की हैसियत से न केवल कार्य कर रहे है बल्कि उनकी नियुक्ति भी श्री तोमर ने करवाई थी।

3. उपेन्द्र पाण्डेय, सुरक्षा गार्ड विधानसभा, जो नियुक्ति दिनांक से लेकर आज दिनांक तक   श्री बाबूलाल गौर, गृह मंत्री, म.प्र.शासन के निवास पर कार्यरत है ।

4. नरेन्द्र शर्मा, सहायक मार्शल, म.प्र. विधान सभा की नियुक्ति उनके पिता श्री रघुनंदन शर्मा जो भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष होकर पूर्व राज्यसभा सदस्य है, इन्हें बिना किसी चयन प्रक्रिया अपनाए गए सीधे सहायक मार्शल के पद पर नियुक्ति दी गई ।

5. घनश्याम चंद्रवंशी, जो कि संसदीय कार्य मंत्री, श्री नरोत्तम मिश्रा के बंगले में दैनिक वेतन भोगी के रूप में कार्यरत थे, इन्हें श्री मिश्रा के कहने पर ही विधानसभा सचिवालय में अवैध रूप से निम्न श्रेणी लिपिक के पद पदस्थ कर दिया गया। मप्र विधानसभा सचिवालय एवं बीजेपी विधायक दल दोनों और से वेतन भुगतान किया जा रहा है । चंद्रवंशी भी ये मंत्री श्री नरोत्तम मिश्रा के बंगले में कार्यरत है।

6. अनुभव कटारे, जो विदिशा निवासी होकर मंत्री श्री नरोत्तम मिश्रा की सगी बडी बहन के लड़के है, नरोत्तम मिश्रा के कहने पर मप्र विधान सभा के माननीय अध्यक्ष, श्री सीताशरण शर्मा द्वारा इन्हें तीन चार माह पहले बिना किसी चयन प्रक्रिया के कुछ दिनों के लिए दैनिक वेतन भोगी के नाम से रखा गया फिर इन्हें नियिमत सहायक मार्शल के पद पर विधानसभा सचिवालय में नियुक्त कर दिया गया। जो आज दिनांक को भी विधानसभा सचिवालय में कार्यरत हैं।

इसके अतिरिक्त इन वर्षों में जो नियुक्तियां की गई उनके नाम एवं पद इस प्रकार है।  
1. जितेन्द्र सावनेर, सहा.ग्रेड- 3
2. कुमारी नेहा राजसिंह, सहा.ग्रेड- 3
3. श्रीमती शालिनी पाण्डे, सहा.ग्रेड- 3
4. विपिन शंकर मेहता, सहा.ग्रेड- 3
5. सुभाष कुमार बघेल, सहा.ग्रेड- 3
6. मनीष कुमार दुबे पिता श्री कृष्ण कुमार दुबे सहा.ग्रेड- 3
7. ज्ञानसिंह गौर पिता श्री भरत जी गौर सहा.ग्रेड- 3
8. राम दुबे पिता श्री लौचन प्रसाद दुबे सहा.ग्रेड- 3
9. शेषनारायण भटराई पिता श्री तुमलाल भटराई सहा.ग्रेड- 3
10. कालीदास बैरागी पिता श्री नरसिंह दास बैरागी सहा.ग्रेड- 3
11. अजय कुमार चैकसे, स्टेनों टायपिस्ट
12. चूडामणि पौंडेल, भृत्य
13. सिन्धु पटेल, भृत्य
14. अरूषण ताम्रकार, भृत्य
15. लक्ष्मीनारायण चैधरी, बुक लिफ्टर
16. संतु यादव, बुक लिफ्टर
17. आशीष श्रीवास, टेलीफोन अटेन्डेंट
18. श्रीमती शमीम, कार्यभारित फर्राश
19. श्रीमती ममता वर्मा (सौंधिया) कार्यभारित फर्राश
20. श्रीमती आशाबाई गौरखेडे, कार्यभारित फर्राश
21. श्रीमती राजेश्वरी नैयनार, कार्यभारित वाटरमेन
22. चतुनारायण मेवाडा, कार्यभारित वाटरमेन
23. तोरण सिंह, पम्प आपरेटर
24. महेश सेन, कार्यभारित चैकीदार
25. चन्दन सिंह गोटिया कार्यभारित चैकीदार
26. अरूण झा, स्वीपर
27. श्रीमती सुभ्रदा बाई गोटिया, भृत्य
28. लालमन चैधरी पिता छकोडीलाल चोधरी, भृत्य
29. आत्माराम पाण्डे तिपा श्री डीलाराम पाण्डे, भृत्य
30. सुनील यादव पिता जगदीश यादव, भृत्य
31. वेदप्रकाश पाण्डेपिता श्री एम.एन.पाण्डे, भृत्य
32. महेश सिंह पिता मथुरा प्रसाद, भृत्य
33. रामकिशन गोटिया पिता महेश प्रसाद भृत्य
34. लक्ष्मण पाण्डे पिता श्री रेणुकांत पाण्डे, भृत्य
35. गणपत भावरे पिता श्री मदनलाल भांवरे, भृत्य
36. रबहादुर थापा पिता श्री नैना सिंह, भृत्य
37. अनिल कुमार रजक पिता श्री भुरे लाल रजक, भृत्य
38. जितेन्द्र कुमार, जमादार
39. सत्येन्द्र कुशवाहा, जमादार
40. हरगोविंद, भृत्य
41. अरूण ताम्रकार, भृत्य अनंद कुमार पाठक, भृत्य
42. गोविंद यादव, भृत्य
43. अमित तिवारी, भृत्य
44. मुन्नी बाई, फर्राश
45. कुसुमलता गोटिया, फर्राश
46. राजकुमार मालवीय, दैवैभो
47. विष्णु भटटाराई, दैवैभो
48. अभिषेक द्विवेदी, दैवैभो
49. गीताबाई कोल, दैवैभो
50. कुल बहादुर, दैवैभो
51. श्यामकली गोटिया, दैवैभो
52. राजेश घायवणकर, दैवैभो
53. श्रीमती माया पाण्डे, दैवैभो
54. श्रीमती गीता बाई, दैवैभो
55. जगदीश रजक, दैवैभो
56. सजल यादव, दैवैभो
57. नरेन्द्र यादव, दैवैभो
58. सत्तु यादव, दैवैभो
59. रजनीश यादव, दैवैभो
60. राजेश श्रीवास्तव, दैवैभो

इन्हें पात्रता नहीं होने के बावजूद भी पदौन्नति दी गई
शिवनारायण गौर- आठ महने पहले अप्रेल 2014 में प्रतिवेदक से वरिष्ठ प्रतिवेदक बनाया गया तथा दिसम्बर में इन्हें अवर सचिव बना दिया गया ।

एसएस राजपाल- नान टेक्निकल होने के बावजूद इन्हें संचालक तकनीकी का पद सौंप दिया गया।

जयकुमार गुरमलानी- स्टेनो को लेखा अधिकारी बना दिया गया ।

अनवरूद्दीन काजी- ये विधान सभा के पूर्व सचिव के पुत्र है इन्हें पहले मार्शल तथा अब सहायक संदर्भ अधिकारी बना दिया गया है ।

पीएन विश्वकर्मा- बिना किसी प्रशासकीय स्वीकृति के डीपीसी किए उप सचिव बनाए गए ।

मंजू गजभिये- स्टाफ आफिसर से ओएसडी बना दिया गया तथा उनसे योग्य वे सीनियर रेखा माथुर को दरकिनार कर दिया गया ।

मनोज सक्सेना- ये लाइब्रेरी व रिकार्ड का काम देखते थे इन्हें उप सचिव का रैंक देकर ओएसडी बना दिया गया ।

नवल मिश्रा- लेखा अधिकारी होने के बाद भी एकाउंट से संबंधित कार्य नहीं दिया गया ।

महावीर सिंह- उपायुक्त योग्यता नहीं होने के बाद भी जनसंपर्क अधिकारी बना दिया गया ।

मिश्रा ने कहा कि बात यहीं पर खत्म नहीं होती है, यदि उक्त कर्मचारियों को अवैध रूप से नियुंक्त करना ही था तो इसी वर्ष 2004 में निम्न कर्मचारियों को निकाला भी गया, ऐसा क्यों और किस लिए किया गया ? वर्ष 2004 में जिन कर्मचारियों को बिना किसी पूर्व सूचना के बलात निकाला गया उनके नाम भी इस प्रकार है:-

1. ओमप्रकाश तचुर्वेदी
2. विवेकानंन्द त्रिवेदी
3. पंचराज तिवारी
4. कृष्ण निवास तिवारी
5. नारायणप्रसाद तिवारी
6. मुकेश मालवीय
7. श्रीनिवास शर्मा
8. नन्दलाल शर्मा
9. धीरेन्द्र मिश्रा
10. पुष्पेन्द्र तिवारी
11. रमेश रजक
12. रामचन्द्र धोबी
13. रमाकान्त मिश्रा
14. धन सिंह
15. रमाशंकर तिवारी
16. दीनदयाल
17. संजीव मिश्रा
18. कृष्णा मोहन तिवारी
19. राजेन्द्र शर्मा
20. राजेन्द्र गौतम
21. संजय कुमार तिवारी
22. अशोक शुक्ला
23. मोहम्मद इस्लाम
24. दिनेश लालजी
25. दादूलाल मिश्रा
26. गजेन्द्र पाठक
27. जयकरण त्रिपाठी
28. कैलाशमणि शर्मा
29. बृजेन्द्र दुबे
30. उमाशंकर मिश्रा
31. संजय गरोहा

मिश्रा ने कहा कि जिस विधानसभा सचिवालय ने सरकार के दबाव में 12 साल पुराने मामले में हमारे वरिष्ठ नेताओं को लांछित किया है, वे अब कांग्रेस के प्रमाणिक आरोपों के बाद खुद के बारे में क्या कहेंगे, नैतिकता का तकाजा है कि विधानसभा सचिवालय के प्रमुख सचिव भगवानदेव इसरानी, अवर सचिव के.एल.दलवानी, न केवल अपने पद से इस्तीफा दे बल्कि अपने स्वयं को भी पुलिस के हवाले करें और उल्लेखित अवैध/फर्जी नियुक्तियों, प्रतिनियुक्तियों और पदोन्नतियों के जवाबदेह लोगों के विरूद्ध भी एफ.आई.आर.दर्ज कराने का नैतिक साहस दिखाएं ।

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