डिण्डौरी संग्राहलय में रखा डायनासोर का अंडा नकली निकला

डिण्डौरी। बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट आॅफ पेलियोबाटॅनी लखनऊ की सीनियर साइंटिस्ट डाॅ. श्रीमति रश्मि श्रीवास्तव का मण्डला 3 दिवसीय दौरा हुआ जिसमें उन्हौने अपने दल के साथ राष्ट्रीय फासिल उद्यान घुघुवा, डिण्डौरी के जीवाश्म संग्रहालय सहित कई पादप जीवाश्म स्थलों का अवलोकन किया। उन्होने बताया कि यहां रखा डायनासोर का अंडा वस्तृत: अंडा ही नहीं है, वो तो कुछ और है। यहां वहां से जानवरों की हड्डियां बटोर कर संग्रहालय में रख दी गईं हैं, उसका पुरातत्व से कोई रिश्ता ही नहीं है। अब सवाल यह उठता है कि यदि यह अंडा नकली है तो असली कहां गया ? 

वरिष्ठ अध्यापक डी.के.सिंगौर ने बताया कि राष्ट्रीय फाॅसिल उद्यान के अवलोकन पर वहां की व्यवस्था देखकर वैज्ञानिक दल को घोर निराशा हुई। डाॅ. रश्मि श्रीवास्तव नेे फासिल उद्यान की विजिट बुक में लिखा है कि उन्हौनें घुघुवा फासिल उद्यान के विकास के लिये काफी काम किया है घुघुवा और उमरिया में मिले अनेक पादप फासिल्स की स्लाइड बनाकर उनकी पहचान सुनिश्चित की और सेण्टर आॅफ इन्वायरोमेण्टल एज्यूकेशन अहमदाबाद के साथ मिलकर घुघुवा फासिल उद्यान के अधिकारियों को सेम्पल की मार्किंग कर जानकारी प्रदान की, ताकि पहचाने जा चुके जीवाश्म काष्ठ के साथ पादप के नाम की तख्ती लगाकर संग्रहालय में रखे जा सकें। लेकिन संग्रहालय में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं दी गई है बगैर पहचान किये गये जीवाश्म पर अन्दाजन नाम लिख दिये गये हैं। तैयार की गई तख्तियां बिना मार्क वाले किसी भी सेम्पल के साथ लगा दिये गये हैं, और बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट के परिश्रम को व्यर्थ कर दिया गया है।

श्रीमती श्रीवास्तव ने बताया कि संग्रहालय में कई नमूने ऐंसें रखे हैं जो फासिल्स ही नहीं हैं।डायनोसौर के अण्डे के नाम से कथित फासिल्स को भी उन्हौने उसे मेटामार्फिक राॅक बताते हुये अण्डा मानने से इंकार किया। ज्ञातव्य हो कि कुछ ही दिवस पूर्व महाराष्ट्र के ज्योलाजिकल सर्वे आफॅ इण्डिया के रिटा.डिप्टी डायरेक्टर एवं डायनासौर जीवाश्म के विशेषज्ञ डाॅ.डी.एम. मोहाबे ने घुघुवा फासिल उद्यान में रखे कथित डायनासौर के अण्डे को फर्जी बताया था। बावजूद इसके अण्डे का कथित जीवाश्म उद्यान के संग्रहालय में अभी भी रखा हुआ है।

वैज्ञानिक दल ने डिण्डौरी में नगरपालिका द्वारा बनाये गये जीवाश्म संग्रहालय का भी अवलोकन किया जिसमें उन्हौनें पाया कि जीवाश्म के नाम से रखे गये लगभग 500 सेम्पल में से मात्र 3 ही जीवाश्म हैं शेष मेटामाॅिर्फक राकॅ हैं जिसमें कि जीवाश्म हो ही नहीं सकता। सिर्फ उनकी विशेषाकृति को देखकर संग्रहित किया गया है। इस संग्रहालय में आज कल के जानवरों की हड्डियां देखकर उन्हौने आश्चर्य व्यक्त किया और इसे संग्रहालय में रखे जाने को हास्यास्पद बताया। बताया गया कि डिण्डौरी जिले के पूर्व कलेक्टर श्री मदन कुमार ने यह संग्रहालय बनवाया था।

डाॅ. रश्मि श्रीवास्तव ने  डिण्डौरी के समनापुर से 6किमी पहले किंकराझर में मिले फासिल्स जैसे गुम्बदनुमा पत्थरों को फासिल्स मानने से साफ इन्कार किया। उन्हौने बताया कि यह आकृति विशिष्ठ जरूर है जो कि अधिक तापक्रम के कारण लावा से ऐसी विशेष आकृतियां बन जाती है ये चट्टानें कायांतरित चट्टानें हैं जिसमें फासिल्स नहीं होता। वरिष्ठ अध्यापक डी.के.सिंगौर ने यहां के जीवाश्म नुमा विशेषाकृति पत्थरों पर और शोध की आवश्कता बताते हुये अमेरिका से भूगर्भशास्त्रियों को आमंत्रित किया है जो कि अप्रैल माह में यहां आयेंगें।

उन्हौने बताया कि घुघुवा फासिल्स उद्यान में डाॅ धर्मेन्द्र प्रसाद और बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट के डाॅ. बान्डे और डाॅ.रश्मि श्रीवास्तव ने बहुत काम किया है लेकिन उनका राष्ट्रीय उद्यान के संग्रहालय में कोई उल्लेख न मिलना गलत है। वैज्ञानिक दल में महाराष्ट्र से डाॅ दशरथ कापगाते, डाॅ शेख भी शामिल थे। वैज्ञानिक दल को डी.के.सिंगौर के साथ साथ प्रकाश सोनवानी, संजीव सोनी, अमरसिंह चन्देला और दीपक कछवाहा ने भी सहयोग प्रदान किया।

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