अंतत: फंस ही गए योगीराज, अब सजा का इंतजार

भोपाल। मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार के ब्रांड एम्बेसडर योगीराज शर्मा अंतत: फंस ही गए। बड़ी चतुराई के साथ उन्होंने हर जांच से बाहर निकलने की तिकड़में लगाईं थीं, कई पायदानों पर वो सफल होते भी दिखाई दिए थे परंतु लोकायुक्त में पहुंचकर वो सांपसीढ़ी का खुल हार गए। लोकायुक्त की विशेष न्यायालय में तत्कालीन स्वास्थ्य संचालक डॉ. योगीराज शर्मा एवं उनके बिजनेस पार्टनर अशोक नंदा सहित 6 के खिलाफ आरोप तय कर दिए गए हैं।

याद दिला दें कि ये वही योगीराज शर्मा हैं जिनके यहां पड़े इनकम टैक्स के छापे के दौरान रजाई, गद्दे, तकिया, दीवारें, छत यहां तक कि टॉयलेट से भी नोटों की गड्डियां बरामद हुईं थीं। मध्यप्रदेश में पहली बार नोटों को गिनने के लिए मशीनों का इस्तेमाल किया गया था।

अकूत काली कमाई उजागर होने के बाद भी योगीराज शर्मा किसी भी प्रकार के कड़े दंड से लगातार बचते आ रहे हैं। शर्मा ने अपने खिलाफ शुरू हुई हर जांच को मैनेज करने का प्रयास किया और काफी हद तक वो सफल भी होते गए। नंगा सच तो यह है कि आज भी योगीराज के पास हजारों करोड़ की काली कमाई शेष है और वो उसे कई धंधों में लगा चुके हैं। प्रॉपर्टी एवं कई अन्य अवैध धंधों के अलावा एक टीवी चैनल में भी योगीराज शर्मा पार्टनर बने हुए हैं।

क्या है मामला
एनआरएचएम योजना के तहत केंद्र सरकार से पहली किश्त के रूप में वर्ष 2006 में 23.34 करोड़ रुपए का आवंटन हुआ था। लोकायुक्त पुलिस की जांच में सामने आया कि इस राशि से ड्रग किट आशा ए और बी की खरीदी में आरोपियों ने मिलीभगत कर करीब सात करोड़ रुपए का भ्रष्टाचार किया था।

टेंडर हासिल करने वाली बेंगलुरू की कंपनी केएपीएल ने वास्तव में ड्रग किट आशा ए और बी की 24 दवाओं में से महज छह दवाएं ही सीपीएसयू की बनी हुई सप्लाई की थी। शेष |पेज 15 पर
बाकी की 18 दवाएं सामान्य दवा निर्माताओं से खरीद कर कागजों पर बनी नेप्च्यून रेमिडीज के माध्यम से सप्लाई कर दी।

12 मार्च 2014 को कोर्ट में पेश करीब 3800 पेज के चालान में लोकायुक्त पुलिस ने डॉ. योगीराज शर्मा, अशोक नंदा, नेप्च्यून रेमिडीज (केवल कागजों में) के फर्म संचालक सत्येंद्र साहू, केएपीएल के एजीएम दीपक नाईगांवकर, बसंत सेलके व योगेश पटेरिया को भ्रष्टाचार के मामले में आरोपी बनाया है।

चालान के मुख्य अंश


जहां दवा कंपनी का पता बताया वहां मिली चाय और फूलों की दुकान:
लोकायुक्त पुलिस जांच के दौरान जब दवा सप्लाई करने वाली नेप्च्यून रेमिडिज कंपनी के पुराने भोपाल स्थित कमाली मंदिर के रजिस्टर्ड पते पर पहुंची तो पता चला कि कागजों में जहां कंपनी का गोडाउन दर्शाया गया है, वहां बीते 15 सालों से एक में चायपत्ती की दुकान और दूसरी में फूलों की दुकान चल रही थीं। यह धांधली डॉ. योगीराज शर्मा और एवं मालवा ड्रग्स व आइसोमेट्रिक्स मंडीदीप के पूर्व संचालक अशोक नंदा ने मिलकर की थी।

सरकारी रकम निकाल कर बंद कर दिए बैंक खाते
लोकायुक्त की जांच में सामने आया कि सत्येंद्र साहू ने नेप्च्यून रेमिडीज के नाम से महानगर नागरिक सहकारी बैंक, बैरागढ़ और पंजाब नेशनल बैंक, गोविंदपुरा में खाते खुलवाए थे। पीएनबी में नेप्च्यून रेमिडीज नाम का जो खाता था, वह मात्र आठ माह तक चला। वहीं, महानगर बैंक में खोला गया खाता भी महज 17 महीने बाद ही बंद करवा दिया गया।

जांच में सामने आया कि केंद्र सरकार, राज्य सरकार के नियमों एवं बिड डॉक्युमेंट की शर्तों का उल्लंघन करने के साथ-साथ आरोपियों द्वारा आपराधिक षडयंत्र कर एक नाम मात्र की फर्म बनाकर कूट रचित दस्तावेज तैयार कर सरकारी रकम का दुरुपयोग किया गया।

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