महिला जज के यौन उत्पीडन मामले में MP हाईकोर्ट की कमेटी भंग

नई दिल्ली। ग्वालियर की पूर्व महिला जज को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है. पूर्व महिला जज ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक जज पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था, जिसकी जांच के लिए मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने दो जजों की कमेटी बनाई थी, जिसके खिलाफ महिला जज ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी.

सुप्रीम कोर्ट ने जजों की कमेटी को अवैध ठहराया है. कोर्ट ने कहा कि जांच कमेटी बनाने का अधिकार चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को है. साथ ही कोर्ट ने हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पर सवाल उठाते हुए कहा कि उन्हें जांच की नई कमेटी से दूर रखा जाए. सुप्रीम कोर्ट पुरुष जज पर लगे आरोपों को सार्वजनिक करने को भी कहा है और आरोपी जज को प्रशासनिक जांच से हटाने का आदेश दिया है.

उलेखनीय है कि ग्वालियर की एक पूर्व महिला जज ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के जज पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. ग्वालियर में एडीजे रही महिला जज ने मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) आरएम लोढ़ा को पत्र भेजकर इसकी शिकायत की है. लिखा है कि ग्वालियर पीठ के प्रशासनिक जज उन्हें घर पर अकेले मिलने के लिए दबाव डालते थे.

सीजेआई को लिखे नौ पन्नों के पत्र में महिला जज ने कहा है, हाईकोर्ट जज ने कुछ माह पहले मेरे काम में दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दी थी. फिर रंगीन मिजाजी शुरू कर दी. इस सबके चलते मुझे अपनी गरिमा, स्त्रीत्व और आत्मसम्मान बचाने के लिए इस्तीफा देना पड़ा. महिला का आरोप है, जज ने उसका करियर तबाह करने की धमकी भी दी थी. महिला जज ने 15 जुलाई को इस्तीफा दिया था.

महिला जज ने यह पत्र सुप्रीम कोर्ट के जज एचएल दत्तु, टीएस ठाकुर, अनिल आर. दवे, दीपक मिश्रा और अरूण मिश्रा को भी भेजा था. सूत्रों के अनुसार शिकायत की एक प्रति मप्र हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को भी प्रेषित की थी . मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश एसके गंगेले पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली ग्लावियर की पूर्व अतिरिक्त जिला एवं सेशन जज ने दावा किया यह कि तीन अन्य जजों को उसकी कोर्ट में रोज मर्रा की बैठकों में हस्तक्षेप कर कथित उत्पीड़न के लिए उकसाया गया था.

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों को भेजी आठ पन्नों की शिकायत में महिला जज ने आरोप लगाया था  कि उसका उत्पीड़न उस वक्त और बढ़ गया था जब दो न्यायाधीशों का अप्रेल 2014 में ग्वालियर की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में ट्रांसफर किया गया था. न्यायाधीश गेंगेले ने उन दोनों न्यायाधीशों को यातना देने के लिए इस्तेमाल किया था. सवालों के घेरे में आया तीसरा जज डिस्ट्रिक्ट रजिस्ट्रार है.

शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि गेंगेले के निर्देश पर दो जजों ने उसकी अदालतों का असामान्य तरीके से बार बार निरीक्षण शुरू कर दिया. ये जज कोर्ट शुरू होने के कुछ मिनट बाद, नियमित और कुछ घंटों के भीतर निरीक्षण शुरू कर देते थे. यहां तक की लंच के दो मिनट पहले, लंच के एक मिनट बाद और कोर्ट की राइजिंग के पांच मिनट पहले भी निरीक्षण करते थे.

महिला जज का दावा है कि निरीक्षण के बावजूद उसकी कोई गलती नहीं पाई गई. बैकलॉग को पूरा करने के लिए उसने अदालत का समय बढ़ा दिया था. महिला जज का आरोप है कि इन जजों का इरादा उस वक्त स्पष्ट हो गया जब वह ऑफिस के लिए फुल टाइम चपरासी के अनुरोध को लेकर एक जज से मिली थी. बकौल महिला जज, उस न्यायाधीश ने मुझसे कहा कि मैं तुम्हारी मदद नहीं कर सकता. अगर तुम्हें कुछ चाहिए तो गंगेले से मिल लो. इससे मेरे अनावश्यक उत्पीड़न की वजह स्पष्ट हो गई.

मेरे वरिष्ठ मेरे संकल्प को तोड़ने और मुझे दबाने और झुकाने के लिए ऎसा कर रहे थे. इसके बावजूद मैंने गंभीरता के साथ अपना काम जारी रखा और गंगेले की दुष्ट डिमांग की गुफा में नहीं फंसने का फैसला किया. अपनी शिकायत में महिला जज ने दावा किया है कि वह अपने पति के साथ हाईकोर्ट की जबलपुर पीठ के मौजूदा न्यायाधीश से मिली थी. उन्होंने आश्वासन दिया था कि वे गंगेले से बात करेंगे.

सिधी ट्रांसफर किए जाने के बाद 15 जुलाई को महिला जज ने इस्तीफा दे दिया था. महिला जज का आरोप है कि तीन जजों के कारण उसका ट्रांसफर किया गया था. महिला जज ने दावा किया कि तीनों न्यायाधीशों ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को निराधार,तुच्छ और दुर्भावनापूर्ण रिपोर्टिग की. जब रजिस्ट्रार ऑफ जनरल ने आठ महीने की मियाद बढ़ाने से इनकार कर दिया तो महिला जज के पास गंगेले के पास जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. उस वक्त गंगेले प्रशासन के इंचार्ज थे.

महिला जज ने आरोप लगाया कि गंगेले ने उससे कहा कि मेरी आकांक्षाओं को पूरा नहीं करने और बार भी उनके बंगले पर अकेले नहीं आने के कारण ट्रांसफर किया जा रहा है. महिला जज ने दावा किया है कि जबलपुर पीठ के जज ने सलाह दी थी कि अन्य जिले में ट्रांसफर पर पुर्नविचार के लिए अन्य अभिवेदन फाइल करें. महिला जज को हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पास नियुक्ति की मांग करने की भी सलाह दी गई थी.

महिला जज का दूसरा अभिवेदन भी खारिज कर दिया गया और मुख्य न्यायाधीश के दफ्तर ने नियुक्ति से इनकार कर दिया. ऎसा इसलिए हुआ क्योंकि अपराधकर्ता बहुत शक्तिशाली था. पीठ का प्रशासनिक जज होने के कारण वह मुझे हानि पहुंचा सकता था. मुझे सुनवाई का भी मौका नहीं मिला. उस जज के बारे में कल्पना कीजिए जो विशाखा समिति का हिस्सा होने के बावजूद न्याय नहीं पा रही थी.

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