भोपाल। प्रकृति में पाया जाने वाला ई-कोलाई बैक्टीरिया अब पर्यावरण को वायु प्रदूषण से बचाएगा। यह वही बैक्टीरिया है, जो आमतौर पर प्रदूषित भोजन के जरिए मनुष्य की आंत में पहुंचकर फूड पॉइजनिंग का कारण बनता है।
कैंपियन स्कूल के छात्र मयंक साहू ने इस ई-कोलाई बैक्टीरिया के जींस में बदलाव कर उसमें ऐसी क्षमता विकसित करने में कामयाबी हासिल की है, जो उद्योगों की चिमनियों और वाहनों से निकलने वाले धुंए में मौजूद हानिकारक गैसों को अवशोषित (एब्जॉर्ब) कर सकेगा।
यह बैक्टीरिया इन तत्वों को अवशोषित कर इन्हें खाद में बदल देगा। यह खेतों की मिट्टी को उर्वरक बनाने में सहायक होगी। इस मॉडिफाइड बैक्टीरिया को उद्योगों की चिमनियों में एक डिवाइस के जरिए लगाया जाएगा।
पिछले महीने अमेरिका में हुए इंटरनेशनल जेनेटिकली इंजीनियर्ड मशीन कॉम्पीटिशन में इस प्रोजेक्ट को कांस्य पदक मिला है। भोपाल के कैंपियन स्कूल से पासआउट मयंक इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) दिल्ली में बायोटेक्नोलॉजी की पढ़ाई कर रहे हैं।
हानिकारक गैसों की मात्रा हो जाएगी 50 फीसदी कम
इस डिवाइस से उद्योगों और वाहनों से निकलने वाले धुंए में मौजूद हानिकारक गैसों की मात्रा घटकर केवल 50 फीसदी ही रह जाएगी। मयंक और उसकी टीम के इस प्रयोग को अमेरिका के प्रतिष्ठित मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) ने भी सराहा है। डिवाइस को एमआईटी की लैब में रखा गया है ताकि इसी प्रयोग पर दुनिया भर के रिसर्च स्कॉलर्स और काम कर सकें।
ऐसे काम करेगा डिवाइस
मयंक के अनुसार ई-कोलाई बैक्टीरिया के जींस को इस तरह विकसित किया है, जिससे यह सल्फर-डाय-ऑक्साइड और नाइट्रोजन-डाय-ऑक्साइड को अवशोषित कर सके। डिवाइस में मौजूद बैक्टीरिया, सल्फर-डाय-आक्साइड को सल्फर और नाइट्रोजन-डाय-ऑक्साइड को अमोनिया में बदल देते हैं।
तय समय सीमा में अपना काम करने के बाद यह बैक्टीरिया मर जाते हैं। इन मरे हुए बैक्टीरिया को डिवाइस से बाहर निकालकर इनसे सल्फर और नाइट्रोजन को अलग कर लिया जाता है। डिवाइस से निकली सल्फर और नाइट्रोजन खेतों की मिट्टी की उर्वरकता को बढ़ाने में सहायक होती है।
महिंद्रा ने की फंडिंग
मयंक ने बताया कि इस प्रोजेक्ट को डेवलप करने के लिए देश की जानीमानी कंपनी महिंद्रा ने फंडिंग की थी। कंपनी शुरू से ही इस प्रोजेक्ट से जुड़ी हुई है। इस डिवाइस को विकसित कर इसके कमर्शियल उपयोग के लिए कंपनी से आगे की बातचीत की जा रही है।