राकेश दुबे@प्रतिदिन। रूस की मुद्रा रूबल में आई जबर्दस्त गिरावट से रूसी अर्थव्यवस्था एक भयावह संकट में फंस गई है। इसका असर एशिया के कई देशों के साथ भारत पर भी देखा जा रहा है। रूबल की हालत सुधारने के लिए रूस ने अपनी ब्याज दरें एक ही झटके में साढ़े छह फीसदी बढ़ा दीं हैं, लेकिन रूबल की सेहत सुधाने के लिए यह भी काफी नहीं रहा। यूक्रेन के मसले को लेकर इसी तरह का अंदेशा था|
रूसी की अर्थव्यवस्था अपने तेल और गैस भंडार पर आश्रित है। रूस के बजट के आधे हिस्से की भरपाई तेल-गैस कंपनियां ही करती हैं। उसके कुल निर्यात का दो-तिहाई भाग भी इन्हीं कंपनियों का है। यही नहीं, सरकार का बहुत सारा पैसा सीधे-सीधे इन्हीं कंपनियों में लगा है। सरकारी बैंकों के जरिए भी इन कंपनियों में सरकार का ही पैसा लगा है। इसलिए तेल से होने वाली आमदनी कम होते ही रूबल की कीमत नीचे जाने लगी।
इसके अतिरिक्त रूसी कंपनियों पर यूरोपियन यूनियन के प्रतिबंध के कारण रूसी फर्में दूसरे देशों से कर्ज नहीं ले पा रही हैं, नतीजतन उनकी दशा भी खराब हो गई है। आने वाले दिनों में हालत और भी बिगड़ सकती है क्योंकि अमेरिका ने भी रूस पर प्रतिबंध लगाने का फैसला कर लिया है। रूबल के गिरने से रूस के मार्केट में मजबूत हैसियत रखने वाली भारतीय दवा कंपनियों के शेयरों में तेज गिरावट आई है।
रूबल के गिरने से इंडोनेशिया और तुर्की समेत कई विकासशील देशों की मुद्रा में भी गिरावट आई है। इसका हमें सीधा नुकसान हुआ है क्योंकि मोदी सरकार भारतीय उत्पादों के लिए विकासशील देशों में बाजार तलाश रही थी। इसके साथ ही कूटनीति के मोर्चे पर भी एक नई चुनौती पैदा हो गई है। रूस से हमारे संबंध अच्छे हैं लेकिन अमेरिका और यूरोप हमारे बड़े बिजनेस पार्टनर हैं। कहीं ऐसा न हो कि रूस से नजदीकी की वजह से हमें भी इनकी कटुता झेलनी पड़े।