नईदिल्ली। हिंदुत्व और धर्मांतरण पर 'अपनों' के विवादित बयानों को शांत करने के लिए पीएम मोदी की कथित पद त्यागने की धमकी बेकार जाती दिख रही है। शनिवार को खुद संघ प्रमुख मोहन भागवत के बाद रविवार को विश्व हिंदू परिषद के संरक्षक अशोक सिंघल ने विवादित बयानों का सिलसिला जारी रख मोदी को फिर विपक्षी दलों के निशाने पर ला दिया। सवाल यह है कि मोदी अब क्या करेंगे?
मोदी ने शुक्रवार को संघ नेताओं के साथ बैठक में विवादित बयानों पर नाराजगी जताते हुए यहां तक कह दिया था कि मुझे पद का मोह नहीं है। इसके बाद संघ ने सरकार को ऐसे नेताओं और हिंदू संगठनों से सख्ती करने का ग्रीन सिग्नल दे दिया था। लेकिन अगले ही दिन खुद भागवत और फिर सिंघल ने ऐसे ही विवादित बयान दे डाले।
शनिवार को संघ प्रमुख मोहन भागवत ने धर्मांतरण के पक्ष में बयान दिया। उन्होंने यहां तक कह दिया कि हिन्दुस्तान को हिन्दू राष्ट्र बनाना है। रविवार को विश्व हिंदू परिषद के वरिष्ठ नेता अशोक सिंघल ने एक कदम आगे बढ़कर बयान दिया। उन्होंने कहा कि दुनिया में ईसाई और मुस्लिमों के कारण ही युद्ध होते हैं। वीएचपी के धर्मांतरण कराने के अभियान का बचाव करते हुए सिंघल ने कहा कि हम धर्म परिवर्तन कराने नहीं दिल जीतने निकले हैं।
इसका नतीजा यह हुआ है कि मोदी अब ईसाई समुदाय के निशाने पर भी आ गए हैं। सिंघल के बयान के ठीक बाद ईसाई समुदाय की ओर से भी मोदी के बयान की मांग उठ गई। दिल्ली कैथलिक चर्च के प्रवक्ता सबरीमुत्तू ने कहा कि पीएम मोदी को इस पर स्पष्टीकरण देना चाहिए, जिससे ईसाई समुदाय खुद को सुरक्षित महसूस कर सके।
वहीं विपक्ष ने भागवत के बयान पर पीएम मोदी की चुप्पी को लेकर उन्हें घेरना शुरू कर दिया। कांग्रेस प्रवक्ता संदीप दीक्षित ने पूछा, 'क्या भागवत के बयान से मोदी सहमत हैं? यदि पीएम सहमत नहीं हैं तो सामने आकर इस बयान को खारिज करें।' आरएसएस प्रमुख के हिन्दू राष्ट्र वाले बयान पर विपक्ष ने एकजुट होकर हमला बोला है। जाहिर है ऐसी हालत में मोदी की मुश्किलें कम नहीं होने वाली हैं। विपक्ष एक बार फिर से संसद में सरकार को घेरेगा। ऐसी स्थिति में सरकार के लिए जवाब देना आसान नहीं होगा।