सुरेन्द्र कुमार पटेल। एक दूसरे स्कूल भ्रमण पर गया हुआ था, कुर्सी पर बैठे-बैठे बारी-बारी से कमरे की चारों दीवारों को घूरते हुए सामने के श्यामपट पर नजरें अटक गईं। फिर वहां से नजरें हटाकर कर्मचारियों की बैठक व्यवस्था पर दृष्टि डाली तो देखा स्टाफ रूम विभेदकारी नीतियों से खचाखच भरा था।
भ्रमण सोद्देश्य था, सो कर्मचारी पंजी भी पलटने का अधिकार था। कर्मचारी पंजी पलटने पर जवाब मिल गया। अध्यापक जो सिवाय वेतन के उस स्कूल के सहायक शिक्षक से बेहतर थे, उन दोनों के नाम श्यामपट पर सहायक शिक्षक के नाम के नीचे लिखे हुए थे। कर्मचारी पंजी में भी अध्यापकों के नाम सहायक शिक्षक के नाम के बाद लिखे हुए थे। एक अध्यापक जो पूर्व माध्यमिक विभाग का प्रधानाध्यापक भी था की कुर्सी अन्य अध्यापकों की तरह सामान्य थी जबकि हेडचेयर पर सहायक शिक्षक विराजमान थे। बात-व्यवहार में भी सहायक शिक्षक ही अध्यापकों को निर्देशित करते पाए गए।
प्रश्न ये है कि यदि ये अध्यापक 'शिक्षक' संवर्ग में शिक्षक होते तब भी क्या सहायक शिक्षक, शिक्षकों के साथ यही व्यवहार करता ?
शिक्षक संवर्ग अध्यापक संवर्ग को अपने समकक्ष मानने में खुद का अपमान समझता है। इसलिए एक सहायक शिक्षक अपने आपको वरिष्ठ अध्यापक से भी अधिक श्रेष्ठ समझता है। वरिष्ठ अध्यापक यदि प्रभारी प्राचार्य हो तो उसके निर्देश शिक्षक संवर्ग को डाइजेस्ट नहीं होते। मध्यप्रदेश के कितने ही अध्यापक संवर्ग के कर्मचारी शिक्षक संवर्ग की व्यक्तिगत तुच्छ सोच का शिकार हैं।
शिक्षक संवर्ग द्वारा अध्यापक संवर्ग का ये अपमान तभी खत्म होगा जब अध्यापक संवर्ग का शिक्षा विभाग में संविलियन होगा।
जैसा उन्होंने अपनी एफबी वॉल पर शेयर किया।