कोई गरीब तो संविदा शिक्षक कभी ना बन पाए

Himanshu Raghuwanshi। केंद्र में मोदी सरकार और मप्र में शिवराज सरकार दोनों ही तरह तरह की बाते कर रहे है अपनी उपलब्धि गिना रहे हैं। में इस अंधी सरकार से पूछना चाहता हूँ की मप्र में शिक्षक पिछले कुछ सालो से अपनी मांगे कर रहे है कभी इन्होंने इस पर विचार क्यों नहीं किया। कुत्तो की तरह 2-2 टुकड़े क्यों दे रही है।

कल विलासपुर में एक शिक्षक ने आर्थिक तंगी के कारण आत्महत्या कर ली उस शिक्षक के बारे में कुछ सोचते क्यों उसने इतना बड़ा कदम उठाया। मोदी जी ने आत्महत्या को जुर्म की श्रेणी से तो हटा दिया अब में ये चाहता हूँ की इससे हत्या का जुर्म माना जाए क्योंकि इसके लिए कोई तो दोषी है।

5000 में संविदा शिक्षक काम करते है उनसे अच्छे तो मजदूर है जो अपने परिवार का पेट तो भर लेते है।

पहले हम 125000 में बीएड करें फिर किसी शहर में रहने का इतना ही खर्च उठाये।
300000 में डीएड करने के बाद पेपर दे फिर भी उसमे न हो तो बैठे रहे और हो जाये तो 60000 रुपए साल में नौकरी करो 3 साल की संविदा अवधि मतलब 180000 रुपया में नौकरी करें तब जाकर कभी सही रूप से अध्यापक बन पाते हैं।

मतलब की अगर देखे तो कोई गरीब तो ये नौकरी कर ही न पाये अब समय देखे 2 साल डीएड में और 1 साल पेपर की तैयारी चुनाव के 1 साल पहले पोस्टिंग तो लगभग 1 साल उसमे चला जाता है फिर 3 साल की संविदा अवधि कुल मिलकर 2+1+1+3 = 6 साल का समय बेकार।

ऐसे में फिर आ जाते है शिवराज जी की जबान पर जो कहते है संविदा अवधि 2 साल की जायगी और वेतन 7000 किया जायेगा। लगता है वाकई ये एक घोषणावीर ही हैं। मामा मामा कह कर ये सबकी ले रहे है राजस्थान में चुनाव पूर्व घोषणा हुई उन्होंने वहां संविदा अवधि 1 साल कर दी और वहां सेलेरी भी 30000 है।

भाई मामा जी से तो अब खूब ही दिल भर गया मोदी जी को तो कुछ बोलना चाहिए।

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