बाला बला बर्खास्त हो गए हेल्थ डायरेक्टर, मंत्री को मालूम ही नहीं

उपदेश अवस्थी/भोपाल। मप्र में स्वास्थ्य घोटाला और इसमें संलिप्त अधिकारियों को बचाने के लिए बर्खास्त करने की लिस्ट में डॉ. अशोक शर्मा का नाम भी जुड़ गया है। इसकी शुरूआत योगीराज शर्मा से हुई थी और डॉ. अशोक शर्मा की बर्खास्तगी योगीराज का अनुशरण ही कहा जा सकता है।

मप्र में यह शगल नया नहीं है। एक हेल्थ डायरेक्टर योगीराज शर्मा तो याद ही होगा आपको। दिग्विजय सिंह के शासनकाल में यह अदना सा अधिकारी देखते ही देखते हेल्थ डायरेक्टर बन गया। मप्र में सरकार बदली पर योगीराज शर्मा का काला कारोबार नहीं बदला। मप्र में ये जनाब पहले ऐसे अधिकारी थे जिनके यहां पड़े छापे में नोट गिनने के लिए मशीनें लगानी पड़ीं थीं। डबलबैड, सोफा, टॉयलेट सहित घर में ऐसी कोई जगह नहीं थी जहां से नोटों के बंडल बाहर ना निकले हों।

मजेदार बात तो यह है कि अकूत काली कमाई करने वाले इस अधिकारी को शासन स्तर पर साफ तौर पर बचा लिया गया। पहले उन्हें सस्पेंड किया गया और फिर बर्खास्त। लोगों के जताया गया कि कड़ी कार्रवाई है, बड़ी कार्रवाई है, नौकरी छीन ली गई है, लेकिन असल में इस तरह से योगीराज शर्मा की बाकी जिंदगी जो जेल में कटनी चाहिए थी, बचा ली गई। करोड़ों का कारोबार तो तब भी जारी था, अब भी जारी है।

डॉ. अशोक शर्मा का मामला भी योगीराज शर्मा के प्रकरण की झेरॉक्स कॉपी है। घोटाला उजागर हुआ, हेल्थ डायरेक्टर को सस्पेंड कर दिया गया और फिर बर्खास्त भी कर दिया। जुगाड़ देखिए कि हेल्थ डायरेक्टर की बर्खास्तगी बिना हेल्थ मिनिस्टर की रजामंदी के हो गई। बेचारा मंत्री भी कुछ नहीं कर पाया।

कुल मिलाकर मप्र में भ्रष्टाचारियों को संरक्षित करने का अभियान लगातार जारी है और डा अशोक शर्मा की बर्खास्ती उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं बल्कि उन्हें जेल जाने से बचाने की प्रक्रिया कहा जा रहा है। अब देखना यह है कि भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए अब और क्या क्या नियमों को तोड़ा जाता है।

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