राकेश दुबे@प्रतिदिन। कितने विचित्र हैं हम, हमारे बच्चे भूखे हैं और मंगल मिशन जैसे अंतरिक्ष अभियानों पर गर्व कर रहे हैं| दुनिया भर में कुपोषित बच्चों भारत की हिस्सेदारी 38 प्रतिशत है। हालांकि बच्चों के बीच कुपोषण की व्यापकता ये तथ्य नए नहीं हैं, बिल ऐंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन, जैव-तकनीकी विभाग, अंतरराष्ट्रीय विकास संबंधी संयुक्त राष्ट्र की एंजेसी और कुछ अन्य संगठनों की ओर से आयोजित एक कार्यशाला में फिर से इन पर चिंता सामने आई है।
विश्व भर में कम से कम साठ लाख बच्चों की मौत पांच साल से कम उम्र में ही हो जाती है और लगभग साढ़े सोलह करोड़ बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास अवरुद्ध होता है। भारत में बड़े पैमाने पर बच्चे जिन वजहों से कुपोषण के शिकार होते हैं, अगर गंभीरता से कोशिश की जाए तो उनसे पार पाया जा सकता है। विकास के मुद्दों में कुपोषण जैसा विषय काफी पीछे है, जबकि इस विषय सर ही राष्ट्र का भविष्य तय होगा|
कई अध्ययनों में ये तथ्य आ चुके हैं कि देश के 38 से 45 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं और हर साल लाखों बच्चे इस वजह से मौत के मुंह में चले जाते हैं। जाहिर है, कुपोषित बच्चों के भीतर रोग प्रतिरोधक क्षमता ठीक से विकसित नहीं हो पाती और वे तरह-तरह की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। फिर, उनमें से बहुत-से उन बीमारियों की भी भेंट चढ़ जाते हैं जिनका आसानी से इलाज हो सकता है।
इसके अलावा, गरीब परिवारों की महिलाओं को गर्भावस्था में पोषणयुक्त आहार नहीं मिल पाने से कैसे बच्चों का जन्म होगा और उनके लिए जीवन की संभावना और स्थितियां क्या होंगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। कहने को कुपोषण से निपटने के लिए एकीकृत बाल विकास कार्यक्रम से लेकर मिड-डे मील जैसी महत्त्वाकांक्षी योजनाएं लागू हैं। लेकिन अपर्याप्त आबंटन से लेकर बदइंतजामी और भ्रष्टाचार ने इन कार्यक्रमों को कारगर नहीं बनने दिया है।
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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