स्थानीय विरोध के चलते राष्ट्रीय मुद्दों पर वोट मांग रहीं हैं सुषमा स्वराज

भोपाल। स्थानीय मुद्दों पर उठ रहे सवालों और मुखर होते विरोध के बाद अब सुषमा स्वराज राष्ट्रीय मुद्दों पर वोट मांग रहीं हैं। शुरूआत में स्वराज ने अपने विकास कार्यों की किताब छपवाई थी, जब काम नहीं चला तो मोदी और भाजपा सरकार के नाम पर वोट मांग रहीं हैं।

2009 और 2014 की विदिशा लोकसभा सीट में सुषमा स्वराज को पर्याप्त अंतर और अनुभव से गुजरना पड़ रहा है। जहां 2009 के चुनाव में गली गली मालाएं पहनाईं गईं, स्वागत में वोट लुटाए गए वहीं 2014 के चुनाव में वोटर्स सुषमा स्वराज के पसीने निकलवा रहे हैं। वो गांव गांव जा रहीं हैं, 25—25 लोगों की नुक्कड़ संभाएं ले रहीं हैं। गांववाले प्लेट में पारलेजी के बिस्किट ले आते हैं जो एकाध खा ही लेतीं हैं, कहीं कोई नाराज ना हो जाए, बहुत डरी हुईं हैं।

चुनाव प्रचार अभियान के शुरूआत में सुषमा स्वराज ने विदिशा में कराए गए विकास कार्यों की एक किताब छपवाई और उसे दिखाकर सभाओं में दावा किया कि जितना विकास उन्होंने विदिशा में करवाया है पूरे मध्यप्रदेश में किसी ने नहीं करवाया परंतु उनकी यह दावा कुछ ही दिनों में हवा हो गए जब जमीनी हकीकत सामने आई। जो लोग 2009 में सुषमा स्वराज को मालाएं पहना रहे थे, इस बार सवाल कर रहे हैं। मुखर विरोध जता रहे हैं। पूछ रहे हैं दिखाईए तो सही कहां है विकास।

ताजा ताजा ग्राम पांडाझिर में सुषमा स्वराज के पहुंचने पर ग्रामीणों ने सड़क नहीं तो वोट नहीं के नारे लगाते हुए विरोध जताया। कमोबेश यह हालात कई गावों में दिखाई दे रहे हैं। इस विरोध को देखते हुए सुषमा स्वराज ने अपने मुद्दे बदल दिए हैं। अब वो लोगों से कहतीं हैं कि 'मैने लोकसभा में विपक्ष की नेता की जिम्मेदारी ईमानदारी से निभाई, आतंकवाद का मुद्दा उठाया, कांग्रेस का विरोध किया, अब केन्द्र में सरकार बनानी है, अच्छे लोगों की जरूरत है, इसलिए मुझे वोट दीजिए।' स्थानीय विकास और बाकीसबकुछ सुषमा स्वराज के भाषणों से अब गायब हो गए हैं।


वो तो किस्मत ही कहिए सुषमा स्वराज की कि उनके विरुद्ध मैदान में दिग्विजय सिंह के अनुज लक्ष्मण सिंह मैदान में हैं और इसका लाभ उन्हे मिल रहा है, अन्यथा चुनौती और ज्यादा गंभीर हो गई होतीं

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